Friday 30 March 2012

स्फटिक श्री यन्त्र

सुप्रभात = प्रिय मित्रो - आज शुक्रवार - " माँ लक्ष्मी " की अराधना करने का दिन =
=
दरिद्रता दूर करने -और आर्थिक समृधि प्राप्त करने का दिन =
=
आज बताता हु आपको " स्फटिक श्री यन्त्र " के बारे में =
1 = "
श्री यन्त्र ' अपने घर और ऑफिस में शुभ मुहूर्त में शुक्रवार को पूजा स्थल में स्थापित करे =
2 =
प्रतिदिन ' श्रीयंत्र " को गंगाजल से स्नान करा के अगरवत्ती जलाकर " श्री सूक्त " का पाठ करे =
3 =
अगर आप अत्यधिक आर्थिक संकट से ग्रस्त है - तो इस मन्त्र की एक माला जप करे =
= "
ॐ महालक्ष्मे च विदमहे विष्णु पत्न्ये च धीमहि - तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात" =
4 =
उपरोक्त जाप " कमलगट्टे " की माला से ही करे =
5 =
अगर आपके ब्यवसाय को किसी की नज़र लग गयी है - तो उपरोक्त उपाय से सात हफ्ते में निराकरण हो जावेगा =
6 =
दीपावली की रात " गणेश - लक्ष्मी " के साथ " श्रीयंत्र " का विधिवत पूजन करने से स्थाई रूप से लक्ष्मी का वास होता है =
7 =
साल में एक वार " श्रीयंत्र " के पूजन पश्चात सुहागन स्त्री को " श्रृंगार सामग्री " का दान अवश्य करना चाहिए - इससे कभी आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता =

Sunday 25 March 2012

नवरात्र के 9 दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं।


·  नवरात्र के 9 दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं। ये देवियां भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उनकी कामनाएं पूर्ण करती हैं।

शैलपुत्री: पहले स्वरूप में मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार 'शैलपुत्री' के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।

उपासना मंत्र : वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

ब्रह्मचारिणी: दूसरी दुर्गा 'ब्रह्मचारिणी' को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। 'ब्रह्मचारिणी' का अर्थ हुआ, तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।

उपासना मंत्र: दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

चंद्रघंटा: शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार के चंद्रमा को धारण किए हुए हैं। देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है। इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भुत तेज है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं। इनके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं। कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीर्ष पर रत्नजडि़त मुकुट विराजमान हैं। यह साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान देती हैं। कहा जाता है कि यह हर समय दुष्टों के संहार के लिए तैयार रहती हैं और युद्ध से पहले उनके घंटे की आवाज ही राक्षसों को भयभीत करने के लिए काफी होती है।

उपासना मंत्र: पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।

कुष्मांडा: चौथे स्वरूप में देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजडि़त स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं। इन्होंने अपने हाथों में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण किए हैं। अपनी मंद मुस्कान हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी, तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था। ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं। सिर्फ उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है, जो सूरज की तपिश को सहन कर सकें। मान्यता है कि वह ही जीवन की शक्ति प्रदान करती हैं।

उपासना मंत्र: सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तुमे।।

स्कन्दमाता: भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की माता होने के कारण इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। यह दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे हुए हैं। स्कन्द माता की गोद में उन्हीं का सूक्ष्म रूप छह सिर वाली देवी का है। अत: इनकी पूजा-अर्चना में मिट्टी की 6 मूर्तियां सजाना जरूरी माना गया हैं।

उपासना मंत्र: सिंहासानगता नितयं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

कात्यायनी: यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। उनकी पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी दानवों तथा पापी जीवियों का नाश करने वाली हैं। वैदिक युग में ये ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं। यह सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है।

उपासना मंत्र: चंद्रहासोज्जवलकरा शाइलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

कालरात्रि: सातवां स्वरूप देखने में भयानक है, लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है। इन्हें 'शुभंकरी' भी कहा जाता है। 'कालरात्रि' केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं। यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं। इनकी सवारी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है।

उपासना मंत्रः एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कणिर्काकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

महागौरी: आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है। इससे सभी पाप धुल जाते हैं। देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था। उत्पत्ति के समय 8 वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं, इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनका स्वरूप उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी है। यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं। गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली 'महागौरी' सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार हैं।

उपासना मंत्र: श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बराधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

सिद्धिदात्री: नवीं शक्ति 'सिद्धिदात्री' सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कमल के आसन पर विराजमान देवी हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। भक्त इनकी पूजा से यश, बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री की पूजा के लिए नवाहन का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस तरह नवरात्र का समापन करने वाले भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती हैं।

उपासना मंत्र : सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैररमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
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Saturday 24 March 2012

नवरात्र में करिये मन्त्र जाप


" सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः :
. .
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति संशयः " -

 
=
इस " नवरात्र " में करिये उपरोक्त " मन्त्र " की 5 माला जाप - रुद्राक्ष . . या . . लाल चन्दन . . की माला से . . . दूर करिये . . अपने जीवन . . में आने वाली बाधाओं . . को . . . और . . जीवन . . को . . बनाइये . . . खुशहाल . . . 
 
= "
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके :
. .
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते " -
 
 = जीवन में अगर आप सभी प्रकार से खुश रहना चाहते है - और सभी प्रकार से अपना कल्याण चाहते है - तो - करिये उपरोक्त " मंत्र " की 5 माला जाप प्रतिदिन . ." नवरात्र " में . . .
  

= "
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तनुसारिणीम :
. . .
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्धवाम " -

 =
अगर आप चरित्रवान और उत्तम पत्नि प्राप्त करना चाहते है - तो - करिये इस नवरात्र में उपरोक्त " मंत्र " की 5 माला जाप . . प्रतिदिन . . . 

 = " दुर्गे देवी नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके :
. . .
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय " -

 
=
अगर आप चाहते है - कि आपको " स्वप्न " में अपने भविष्य के बारे में जानकारी हो जाये - तो करिये इस " नवरात्र " में उपरोक्त " मंत्र " की 5 माला जाप . . प्रतिदिन . . .