Saturday 30 March 2013

शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के उपाय:


शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के उपाय:
शनि के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय, अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग तरह से बताए गए हैं जिनमें से कुछ उपायों का विवरण निम्नानुसार है।
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शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढे़साती या ढैया के दौरान मांस एवं मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
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काले रंग के वस्त्र में 740 ग्राम काले उड़द और तांबे का सिक्का बांधकर बहते हुए पानी में बहाने से लाभ होता है।
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शनिवार को श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक व्रत करें।
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शनि से संबंधित वस्तुएं घर में स्थापित करें।
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लोहे की वस्तुएं दान करें।
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शनि स्तोत्र का पाठ जप करें।
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घर में भूरे पत्थर की शिला स्थापित करना शुभ है।
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शनि से संबंधित वस्तुएं (तेल, चमड़ा, तांबा, वस्त्र, लोहा, काले तिल आदि) दान में लें।
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बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद लें उनकी सेवा करें।
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लोहे का बिना जोड़ वाला छल्ला दायें हाथ की बड़ी उंगली में पहनें।
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शुक्रवार की रात 750 ग्राम काले तिल भिगोकर सुबह शनिवार को काले घोड़े को खिलाएं।
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अपने चरित्र का विशेष ध्यान रखें।
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पैतृक संपत्तियों का विक्रय किसी भी कीमत पर करें।
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शनिवार को तो लोहा खरीदें और हीं बेचें।
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शनिवार को भी सूर्य को अघ्र्य दें।
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वृष राशि आदि में यदि साढ़ेसाती या ढैया हो, तो अमावस्या को किसी नाले में नीले फूल डालें।
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अपने मकान बिस्तर के चारों कोनों पर लोहे की चार कीलें गाड़ें।
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घर के अंधेरे कमरों में लोहे के पात्रों में सरसों का तेल भरकर रखें।
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यदि संभव हो तो काला कुत्ता पालें।
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धन की रक्षा के लिए एक नारियल काले कपड़े में लपेट कर तिजोरी में रखें।
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शनिवार को गुड़ में काले तिल के लड्डू बनाकर दान करें।
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शनिदोष निवारक यंत्र: किसी योग्य तांत्रिक या गुरु द्वारा प्रदत्त शनि दोष निवारक यंत्र प्राण प्रतिष्ठित कर घर में स्थापित करें या करवाएं। इसके अतिरिक्त इस यंत्र का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन साधना कर गले या बाजू में बांधने से शनि की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है।
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शनि पीड़ा निवारक यंत्र को किसी पत्थर के चैकोर टुकड़े पर काली स्याही से लिखकर रोगी अथवा शनि से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से सात बार घुमाकर ‘‘ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’’ मंत्रा का उच्चारण करते हुए किसी कुएं में डालने से शनि की दशा, अंतर्दशा, ढैया या साढ़ेसाती की पीड़ा का शमन होता है। जो व्यक्ति यह प्रयोग करेगा उसे अपनी सुरक्षा के लिए बाद में सवा पाव मदिरा बहते पानी में प्रवाहित करनी पड़ेगी, अन्यथा उसे कष्ट होगा।
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संपूर्ण बाधा मुक्ति यंत्र प्राप्त कर पूजा स्थल पर प्राणप्रतिष्ठित कर रखें एवं वहां नित्यप्रति धूप एवं दीप जलाएं।
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लाभकारी महिमा मंडित पारद माला: किसी योग्य तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित प्राण प्रतिष्ठित, महिमामंडित शुद्ध पारदमाला धारण करने से भी साढ़ेसाती, ढैया या शनि की दशा-अंतर्दशा के दोष निवारण में लाभ होता है।
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शनि दोष निवारक पिरामिड: किसी योग्य गुरु द्वारा निर्मित प्राण-प्रतिष्ठित शनि पिरामिड का प्रयोग कर आप शनि की साढ़ेसाती या ढैया के दोष का निवारण कर सकते हैं।
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शनि दोष निवारक पारद शिवलिंग के अचूक प्रयोग: शनि की महादशा, अंतर्दशा, ढैया एवं साढेसाती तथा पंचम शनि के दोष निवारण हेतु पारद शिवलिंग की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पारद शिवलिंग की उपासना व्यक्ति को निरोगी बनाती है। असाद्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह एक अचूक उपाय है। जिस व्यक्ति को मारकेश की दशा चल रही हो, उसके लिए यह प्रयोग अत्यंत आवश्यक है।
प्रयोग विधि: रोग से मुक्ति शनि की साढे़साती तथा अन्य सभी दशाओं की पीड़ा से रक्षा के उद्देश्य से पारद शिवलिंग की अर्चना करने वाले साधकों को रात्रि में सवा नौ बजे के उपरांत सवा पाव दूध से पारद शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के समय निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
मंत्र: ‘‘ हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः पारदेशंय्यजामहे,
सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। र्वारुकमिव बंधनान्मृत्यो र्मुक्षीय मा{मृतात् भूर्भुवः स्वः जूं सः हौं ॐ।।’’
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शनिदोष निवारण हेतु हनुमान प्रयोग: दीपावली या शनिपुष्य या किसी भी शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में तिल का सवा किलो तेल चढ़ाएं तथा निम्नलिखित मंत्र का यथासंभव जप करें।
मंत्र: ‘‘ ऐं ओं ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रः नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत, प्रेत पिशाच, ब्रह्म राक्षस, शाकिनी डाकिनी, यक्षिणी, पूतना, मारी, महामारी राक्षस, भैरव, बेताल, ग्रह, राक्षसादि कान्, शिक्षय, महा माहेश्वर रुद्रावतार, ह्रं पफट् स्वाहा।’’
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रत्न धारण द्वारा: किसी योग्य तांत्रिक गुरु या रत्न विशेषज्ञ से 5 से 9 मासा तक का शुद्ध नीलम प्राप्त कर किसी भी शनिवार को या शनि पुष्य नक्षत्र या शनि जयंती को धारण करना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में शनि प्रधान ग्रह हो अथवा, यदि सूर्य के साथ बैठा हो, अथवा यदि मेष आदि राशि में स्थित हो अथवा यदि अपने भाव से छठे या आठवें स्थान में स्थित हो अथवा यदि जातक का जन्म मेष, वृष, तुला, अथवा वृश्चिक लग्न में हुआ हो तो उस स्थिति में भी नीलम धारण किया जा सकता है।
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जड़ी-बूटी: किसी भी शनिवार को अथवा शनि पुष्य, रवि पुष्य, गुरु पुष्य, शनि जयंती, शनि पूर्णिमा या शनि अमावस्या को अथवा दशहरे, दीपावली, होली या किसी भी ग्रहण के समय शमी वृक्ष की जड़ तांत्रिक विधि विधान द्वारा प्राप्त कर तथा तांत्रोक्त विधि से ही पूजा-अर्चना कर गले या दायीं भुजा में शनि स्तोत्र का जप करते हुए धारण करने से सभी प्रकार की शनि पीड़ा में लाभ होता है। यह प्रयोग अनुभूत है।
आम धारणा है कि प्रत्येक व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती ढैया, दशा, अंतर्दशा आदि में अनेक दुख भोगने पड़ते हैं, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। शनि एक ओर शुभ स्वगृही मित्र राशियों में शुभ फल प्रदान करता है, तो दूसरी ओर क्रूर होने, वक्री होने, शत्रु ग्रह में एवं शत्रु राशि में होने पर अशुभ फल प्रदान करता है। यदि किसी जातक की शनि की महादशा अथवा अंतर्दशा चल रही हो और उस अवधि में जातक की राशि में ढैया या साढ़ेसाती शनि का प्रवेश हो जाए, तो जातक के लिए वह समय बहुत ही शुभ होता है।