Tuesday 17 September 2013

इस वर्ष 19 सितंबर 2013 को पूर्णिमा तिथि के दिन से श्राद्ध का आरंभ होगा



भाद्रपद माह की पूर्णिमा से से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध कर्म के रुप में जाना जाता है. इस वर्ष 19 सितंबर 2013 को पूर्णिमा तिथि के दिन से श्राद्ध का आरंभ होगा. इस पितृपक्ष अवधि में पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया दान तर्पण रुप में किया जाता है. पितृपक्ष पक्ष को  महालय या कनागत भी कहा जाता है. हिंदु धर्म मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र - पौत्रों के यहां आते हैं. श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे "श्राद्ध" कहते हैं. श्राद्ध के महत्व के बारे में कई प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन मिलता है. श्राद्ध का पितरों के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध है. पितरों को आहार तथा अपनी श्रद्धा पहुँचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है. मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को "पितर" को पितर कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों का श्राद्ध मनाया जाता है, उनके नाम तथा गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि उन्हें दिया समर्पित किया जाता है, वह उन्हें विभिन्न रुपों में प्राप्त होता है. जैसे यदि मृतक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार देव योनि मिलती है तो श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को खिलाया गया भोजन उन्हें अमृत रुप में प्राप्त होता है. यदि पितर गन्धर्व लोक में है तो उन्हें भोजन की प्राप्ति भोग्य रुप में होती है. पशु योनि में है तो तृण रुप में, सर्प योनि में होने पर वायु रुप में, यक्ष रुप में होने पर पेय रुप में, दानव योनि में होने पर माँस रुप में, प्रेत योनि में होने पर रक्त रुप में तथा मनुष्य योनि होने पर अन्न के रुप में भोजन की प्राप्ति होती है.

अमावस्या का महत्व पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि में श्राद्ध व दान का विशेष महत्व है | सूर्य की सहस्र किरणों में से अमा नामक किरण प्रमुख है जिस के तेज से सूर्य समस्त लोकों को प्रकाशित करते हैं | उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र निवास करते हैं |इसी कारण से धर्म कार्यों में अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है |पितृगण अमावस्या के दिन वायु रूप में  सूर्यास्त तक घर के द्वार पर उपस्थित रहते हैं तथा अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं | पितृ पूजा करने से मनुष्य आयु ,पुत्र ,यश कीर्ति ,पुष्टि ,बल, सुख व धन धान्य प्राप्त करते हैं  |  
श्राद्ध संस्कार मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को "पितर" को पितर कहा जाता है. वायु पुराण में लिखा है कि "मेरे पितर जो प्रेतरुप हैं, तिलयुक्त जौं के पिण्डों से वह तृप्त हों. साथ ही सृष्टि में हर वस्तु ब्रह्मा से लेकर तिनके तक, चाहे वह चर हो या अचर हो, मेरे द्वारा दिए जल से तृप्त हों".
श्राद्ध के मूल में उपरोक्त श्लोक की भावना छिपी हुई है. ऎसा माना जाता है कि श्राद्ध करने की परम्परा वैदिक काल के बाद से आरम्भ हुई थी. शास्त्रों में दी विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्धा भाव से मंत्रों के साथ दी गई दान-दक्षिणा ही श्राद्ध कहलाता है. जो कार्य पितरों के लिए "श्रद्धा" से किया जाए वह "श्राद्ध" है.
 
श्राद्ध का कारण
प्राचीन साहित्य के अनुसार सावन माह की पूर्णिमा से ही पितर पृथ्वी पर आ जाते हैं. वह नई आई कुशा की कोंपलों पर विराजमान हो जाते हैं. श्राद्ध अथवा पितृ पक्ष में व्यक्ति जो भी पितरों के नाम से दान तथा भोजन कराते हैं अथवा उनके नाम से जो भी निकालते हैं, उसे पितर सूक्ष्म रुप से ग्रहण करते हैं. ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है. पुराणों के अनुसार यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं. जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं.
तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है. पिता को वसु के समान माना जाता है. रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है. आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है. श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध के दिन श्राद्ध कराने वाले के शरीर में प्रवेश करते हैं अथवा ऎसा भी माना जाता है कि श्राद्ध के समय यह वहाँ मौजूद रहते हैं और नियमानुसार उचित तरीके से कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध कर्म में उच्चारित मंत्रों तथा आहुतियों को वह अपने साथ ले जाकर अन्य पितरों तक भी पहुंचाते हैं. --- श्राद्ध के हर कर्म में तिल की आवश्यकता होती है। श्राद्ध पक्ष में दान करने वाले को कुछ भी दान करते समय हाथ में काला तिल लेकर दान करना चाहिए।
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पितरों के निमित्त गुड़ एवं नमक का दान करना चाहिए। गरूड़ पुराण के अनुसार नमक के दान से यम का भय दूर होता है।
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पितरों को धोती एवं दुपट्टा का दान करना उत्तम माना गया है। वस्त्र दान से यमदूतों का भय समाप्त हो जाता है
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पितरों की प्रसन्नता हेतु इन चांदी, चावल, दूध वस्तुओं का दान किया जा सकता है
पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति
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ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, चंद्र की पाप ग्रहों जैसे राहु और केतु से युति को पितृ दोष के रूप में व्यक्त किया गया है. इस युति से  मनुष्य जीव न भर केवल संघर्ष करता रहता है. मानसिक और भावनात्मक आघात जीवन पर्यंत उसकी परीक्षा लेते रहते हैं. पितृ पक्ष में अधोलोखित मंत्रों से, या किसी एक मंत्र से काली तिल, चावल और कुशा मिश्रित जल से तर्पण देने से घोर पितृ दोष भी शांत हो जाता है.
1.
ॐ पितृदोष शमनं हीं ॐ स्वधा 
2. ॐ क्रीं क्लीं सर्वपितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट!!  
3. ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ!! 
4. ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधानम प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: अक्षन्न पितरो मीमदन्त पितरोतीतृपन्त पितर: पित: शुन्दध्वम ॐ पितृभ्यो नम  
कौए को भोजन            
श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है.  इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है. एक कथा है कि, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था. त्रेता युग की घटना कुछ इस प्रकार है कि, जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था. तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आँख को क्षतिगग्रस्त कर दिया था. जयंत ने अपने कृत्य के लिये क्षमा मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा. बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है.

Monday 16 September 2013

श्राद्ध पक्ष ….. क्या है और क्यों करने चाहिए..



श्राद्ध पक्ष ….. क्या है और क्यों करने चाहिए..

श्राद्ध में हम सब को अपने पित्र देवो का आशीर्वाद ज़रूर लेना चाहिएचाहे कुंडली में पित्र दोष हो या ना होक्यूंकि बगैर पित्र देवो के आशीर्वाद से कुछ भी नहीं होताकिसी भी देवी-देवता का आशीर्वाद नहीं मिलता.. और ऐसा नहीं है की केवल श्राद्ध पक्ष में ही आशीर्वाद के लिए कुछ करेपित्र देवो के आशीर्वाद के लिए तो हर अमावस्याहर सक्रांति और कोई भी शुभ मुहूर्त में कुछ कुछ करते रहना चाहिए

वैसे भीसंतान की उत्पत्ति में गुणसूत्र का बहुत महत्व हैइन्ही गुणसूत्रों के अलग-अलग संयोग से पुत्र एवं पुत्री प्राप्त होते हैशास्त्रों में पुत्र को श्राद्ध कर्म का अधिकारी मुख्य रूप से माना गया है… { यदि घर में पुरुष सदस्य किसी भी वजह से ना हो तो स्त्री जाती में से भी कोई भी श्राद्ध कर सकता हैव्यवस्था देने के पीछे आचार्यो का उद्देश्य है कि श्रद्ध कर्म का लोप हो। स्मृति संग्रह एवं श्रद्ध कल्पलता के अनुसार पुत्र, पौत्र, पुत्री का पुत्र, पत्नी, भाई-भतीजा, पुत्रवधू, बहन, भांजा, सपिंड (पूर्व की 7वीं पीढ़ी तक के परिवार का सदस्य), सोदक (8वीं पीढ़ी से 14वीं पीढ़ी तक का पारिवारिक सदस्य) को श्रद्ध का अधिकारी माना गया है। इस क्रम में कोई मिले तो माता के कुल के सपिंड और सोदक को भी श्रद्ध करने का अधिकारी माना गया है। } पिता के शुक्राणु से जीवात्मा माता के गर्भ में प्रवेश करती हैउस जीवांश में ८४ अंश होते है…. जिसमे २८ अंश पिता के होते है.. २१ अंश दादा के….१५ अंश परदादा के…. १० अंश उनसे पहले….. अंश उनसे पहले अंश उनसे पहले और अंश उनसे पहले जो पूर्वज होते हैउनके होते है…. इस प्रकार पीड़ियों तक के सभी पूर्वजो के रक्त के अंश हमारे शरीर में होते हैतो हम सब अपने पितरो के ऋणी है…. इसीलिए हम सब को अपने पित्र देवो का आशीर्वाद ज़रूर लेना चाहिए….

वसु, रुद्र और आदित्य श्राद्ध के देवता माने जाते हैं। हर व्यक्ति के तीन पूर्वज पिता, दादा और परदादा क्रम से वसु, रुद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं। इस बार श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ 29 सितंबर, शनिवार से हो रहा है। जो सोलह दिन तक चलता है और अश्विन मास की अमावस्या ( इस बार 15 अक्टूबर, सोमवार ) को समाप्त होता है। 29 सितंबर को अनंत चतुर्दशी सुबह तक रहेगी और पूर्णिमा तिथि लग जाएगी। पितृ पूजा का महत्व मध्यान्ह काल में माना जाता है। इसलिए 29 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध 30 सितंबर को आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा का श्राद्ध किया जाएगा। वहीं, 3 तारीख को पंचाग भेद से तिथि बढ़ेगी और श्राद्ध पक्ष 15 अक्टूबर तक चलेगा। इस तरह पितरों का साथ इस बार 16 नहीं बल्कि 17 दिनों का रहेगा, जो बड़ा ही सुख-सौभाग्य देने वाला साबित होगा।

आयुः पुत्रान्यशः स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं यिम्

पशून्सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात्पितृपूजनात्

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितृ को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख साधन तथा धन धान्यादि की प्राप्ति करता है। यही नहीं पितृ की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के पितृपक्ष में पितृ को आशा लगी रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे।इन दिनों में हम अपने पितरों को याद करते हैं और विभिन्न प्रकार का धार्मिक कार्य कर उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।

श्राद्ध पक्ष में क्या करे और क्या ना करे………

. इन पवित्र दिनों में सबसे पहले भूलकर भी किसी का अपमान ना करेब्रहमचर्य का पालन करेझूठ ना बोले…. मन में क्रोधलालचईर्षा , इस तरह के भाव नहीं होने चाहिए

. लोहे के पात्रों का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए वर्तमान समय में सर्वत्र प्रचलित स्टील में भी लोहे का अंश अधिक होता है, अतः इसका भी प्रयोग नहीं करना चाहिए यदि पूर्णतः त्याग सम्भव हो, तो ब्राह्मण भोजन के समय तो अवश्य ही लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए, भोजन यदि चाँदी के बर्तनों में या पत्तल-दोने में करवाएं तो श्रेष्ठ है….

. जिस भोजन को सन्यासी ने या कुत्ते ने देख लिया हो, जिसमें बाल और कीड़े पड़ गये हों एवं बासी अथवा दुर्गंध-युक्त भोजन हो तो वो भोजन प्रयोग में नहीं लेना चाहिए…..

. श्राद्ध का भोजन स्त्री को नहीं करना चाहिए…..

. श्राद्ध में जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, सरसों का तेल, आम, बेल, अनार, पुराना आंवला, खीर, परवल, चिरौंजी, बेर, जौ, मटर का प्रयोग करना अत्यन्त शुभ होता है…..

. पितरों को चाँदी, सोना एवं ताँबा अत्यन्त प्रिय है, अतः इनका प्रयोग श्राद्ध में किया जाए, तो अत्यन्त शुभ होता है पितरों को तर्पण करते समय यदि तर्जनी अंगुली में चाँदी या सोने की अंगुठी धारण कर ली जाए, तो वह श्राद्ध लाखों करोड़ों गुना फलदायक हो जाता है….

. इन दिनों में गौ माता की जितनी सेवा की जाए कम है… ( वैसे भी पुरे साल भर किसी किसी रूप में करनी ही चाहिए…), पक्षियों को , कअवे को और कुत्ते को भोजन देना या अपनी शमता अनुसार कुछ कुछ देते रहना चाहिए….

श्राद्ध पक्ष आप सब के लिए ढेर साड़ी खुशियाँ लेकर आये.. और पित्र देवो का आशीर्वाद आप सब को मिलेये ही मै दिल से.. ऊपर वाले से प्रार्थना करता हु……
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