Saturday 7 January 2012

मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी 2012 की सुबह



2012 में नए साल का पहला दुर्लभ योग बन रहा है। मकर संक्रांति पर्व पर 20 घंटे के लिए महासंयोग बनेगा। सालों बाद संक्रांति पर सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि एवं रवि योग का महासंयोग बनेगा।  ये तीनों योग सूर्योदय से रात 12.35 बजे तक करीब 20 घंटे रहेंगे। एक साथ ये तीनों शुभ योग होने से श्रद्धालुओं को लाभ मिलेगा।  
इस शुभ पर्व पर उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रहेगा जो कि सूर्य का ही नक्षत्र है। इस मकर संक्रांति पर सूर्य अपने नक्षत्र में रहकर ही राशि बदलेगा और मकर राशि में जाएगा। इस पर्व पर तीन शुभ योग और सूर्य के अपने ही नक्षत्र में होने के साथ ही रविवार भी रहेगा जो कि सूर्य देव का ही दिन रहेगा।
कब और कितनी बजे बदलेगा सूर्य-
14
जनवरी 2012 की रात को सूर्य 12:58 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा और 15 जनवरी 2012 की सुबह 7:14 बजे सूर्योदय से स्नान-दान के लिए पुण्यकाल शुरू होगा, जो शाम 4:58 बजे तक रहेगा।
क्या फल देते हैं ये तीन शुभ योग

अमृत सिद्धि योग: इस शुभ योग में किए गए किसी भी काम काम का पूरा फल मिलता है। इस शुभ योग में शुरू किए गए काम का फल लंबे समय तक बना रहता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग: ज्योतिष के अनुसार इस योग में कोई भी काम करने से हर काम पूरा होता है। समस्त कार्य सिद्धि के लिए और शुभ फल प्राप्त करने के लिए यह योग
शुभ माना जाता है। इस योग में खरीददारी करने का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में खरीददारी करने से लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

रवि योग: यह योग हर काम का पूरा फल देने वाला है। इस योग को अशुभ फल नष्ट कर के शुभ फल देने वाला माना जाता है। इस योग मे दान कर्म करना उचित माना जाता है। ये योग शासकीय और राजकीय कार्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।

एक साथ ये तीनों शुभ योग होने से श्रद्धालुओं को लाभ मिलेगा। इस शुभ पर्व पर उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रहेगा जो कि सूर्य का ही नक्षत्र है। इस मकर संक्रांति पर सूर्य अपने नक्षत्र में रहकर ही राशि बदलेगा और मकर राशि में जाएगा। इस पर्व पर तीन शुभ योग और सूर्य के अपने ही नक्षत्र में होने के साथ ही रविवार भी रहेगा जो कि सूर्य देव का ही दिन रहेगा। यह संयोग अद्वितीय माना जा रहा है।
धर्मग्रंथों में मकर संक्रांति की क्या है मान्यता..?
यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। महाभारत महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह भीष्म पांडवों और कौरवों के बीच हुए कुरुक्षेत्र युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर अर्जुन द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े वे उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली जिससे उनका पुनर्जन्म हो।
सूर्य के उत्तरायण होने का महापर्व
माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्तिÓ पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकरसंक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्राय: 14 जनवरी को पड़ती है।
चावल मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन विधान है। घी मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।
तिल संक्रान्ति में तिल का महत्त्व:
मकर संक्रान्ति के दिन, खिचड़ी के साथसाथ तिल का प्रयोग भी अति महत्त्वपूर्ण है। तिल के गोलगोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। मालिश के लिए भी तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग हमें सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और निरोग रखता है।
इस दिन गंगा स्नान सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिलतिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एकदूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।
संक्रान्ति जन्य पुण्यकाल में दान और पुण्य का महत्त्व:
संक्रान्ति काल अति पुण्य माना गया है। इस दिन गंगा तट पर स्नान दान का विशेष महत्त्व है। इस दिन किए गए अच्छे कर्मों का फल अति शुभ होता है। वस्त्रों कम्बल का दान, इस जन्म में नहीं; अपितु जन्मजन्मांतर में भी पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन घृत, तिल चावल के दान का विशेष महत्त्व है इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त करता है - ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।

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