Monday 11 March 2013

मूर्ति की परिक्रमा हमेशा सीधे हाथ की तरफ से करना चाहिए क्योंकि...

मूर्ति की परिक्रमा हमेशा सीधे हाथ की तरफ से करना चाहिए क्योंकि... 
मंदिर या देवालय वह स्थान है जहां जाकर कोई भी व्यक्ति मानसिक शांति महसूस करता है। किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है। हम इस मनोभाव से भगवान की शरण में जाते हैं कि हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी, जो बातें हम दुनिया से छिपाते हैं वो भगवान के आगे बता देते हैं, इससे भी मन को शांति मिलती है, बेचैनी खत्म होती है।
श्रद्धालु जब मंदिर या किसी देव स्थान पर जाते हैं तो आपने उन्हें देवमूर्ति की परिक्रमा करते हुए देखा होगा। दरअसल परिक्रमा इस कारण की जाती है क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि देवमूर्ति के निकट दिव्य प्रभा होती है।इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ती हो जाती है।
लेकिन देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है।

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