Tuesday 19 March 2013

शिव ही सर्वस्य ::



शिव ही सर्वस्य ::

शिव आदि देव है। वे महादेव हैं, सभी देवों में सर्वोच्च और महानतमें शिव को ऋग्वेद में रुद्र कहा गया है। पुराणों में उन्हें महादेव के रूप में स्वीकार किया गया है। श्वेता श्वतरोपनिषद् के अनुसार सृष्टि के आदिकाल में जब सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था। न दिन न रात्रि, न सत् न असत् तब केवल निर्विकार शिव (रुद्र) ही थे।शिव पुराण में इसी तथ्य को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है -

एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चनसृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। रुका अर्थ है-दुःख तथा द्रका अर्थ है-द्रवित करना या हटाना अर्थात् दुःख को हरने (हटाने) वाला। शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-रूप में शिव का निवास है-
अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।

में शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्।

शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मेंगल, परम कल्याण।

ॐ नम: शिवाय

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