Wednesday 15 February 2012

शास्त्रानुसार कैसे मनाएं महाशिवरात्रि


 शास्त्रानुसार कैसे मनाएं महाशिवरात्रि

   आध्यात्मिक उन्नतिके लिए पिंडसे ब्रह्मांडतककी यात्रा आवश्यक है । इसका अर्थ है कि जो तत्त्व ब्रह्मांडमें अर्थात् शिवमें हैं, उनका पिंडमें अर्थात् जीवमें होना आवश्यक है । तब ही जीव शिवसे एकरूप हो सकता है । पानीकी बूंदमें तेलका अंशमात्र भी हो, तो वह पानीमें पूर्णरूपसे घुल नहीं सकता । उसी प्रकार जबतक शिवभक्त शिवकी सर्व विशेषताएं आत्मसात् नहीं कर लेता, तबतक वह शिवसे एकरूप नहीं हो सकता अर्थात्, उसकी सायुज्य मुक्ति नहीं हो सकती । अतः शिवरात्रिके अवसरपर हमारे पाठक शिवजीकी विशेषताएं एवं उपासना जानकर शिवजी से एकरूप होनेका प्रयास कर पाएं, इस हेतु शिवजीकी कुछ विशेषतापूर्ण जानकारी इस पृष्ठपर दे रहे हैं । इस वर्ष महाशिवरात्रि २० फरवरीको है ।
महाशिवरात्रि किसे कहते हैं ?
    भगवान् शिव रात्रिके प्रहर विश्राम करते हैं । उस प्रहरको, अर्थात् शिवजीके विश्रामकालको महाशिवरात्रि कहते हैं । पृथ्वीका एक वर्ष अर्थात् स्वर्गलोकका एक दिन । पृथ्वी स्थूल है । स्थूलको ब्रह्मांडमें प्रवास करनेमें अधिक समय लगता है । देवता सूक्ष्म होते हैं, इस कारण उनका वेग अधिक होता है । इसलिए उन्हें ब्रह्मांडमें यात्रा करनेमें अल्प समय लगता है । इसी कारण पृथ्वी एवं देवतामें एक वर्षका अंतर है ।
महाशिवरात्रिपर शिवजीकी उपासनाका शास्त्रीय आधार क्या है ?
    शिवजीके विश्रामकालमें शिवजीका तत्त्वका कार्य थम जाता है, अर्थात् उस समय शिवजी समाधि-अवस्थामें होते हैं । शिवजीकी समाधि-अवस्था, अर्थात् शिवजीकी साधनाका समय । इसलिए उस समय शिवतत्त्व विश्व अथवा ब्रह्मांडके तमोगुण अथवा हलाहलको स्वीकार नहीं करता । ऐसेमें, ब्रह्मांडमें हलाहलका एवं अनिष्ट शक्तियोंका प्रभाव बहुत बढ जाता है । उसका प्रभाव हमपर न हो, इसलिए अधिकाधिक शिवतत्त्व आकृष्ट करनेवाले बिल्वपत्र, श्वेत पुष्प, रुद्राक्षकी मालाएं इत्यादि शिवपिंडीपर अर्पित कर वातावरणसे शिवतत्त्व आकृष्ट किया जाता है । ऐसा करनेसे अनिष्ट शक्तियोंका प्रभाव हमपर नहीं होता ।
महाशिवरात्रि व्रत किस प्रकार किया जाता है ?
    ‘फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीको महाशिवरात्रि कहते हैं । महाशिवरात्रिका व्रतकाम्य तथा नैमित्तिक उपलब्धिके लिए रखा जाता है । इस व्रतके तीन अंग हैं - उपवास, पूजा तथा जागरण । शिव इस व्रतके प्रधान देवता हैं । इस व्रतकी विधि इस प्रकार बताई गई है - फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशीको एकभुक्त (दिनमें एक समय अन्न ग्रहण करना) रहें । चतुर्दशीके दिन प्रातःकालमें व्रतका संकल्प करें । सायंकालमें नदीपर अथवा तालाबपर शास्त्रोक्त स्नान करें । भस्म और रुद्राक्ष धारण करें । शिवजीका ध्यान करें । तदोपरांत षोडशोपचार पूजा करें । भवभवानीप्रीत्यर्थ तर्पण करें । प्रदोषकालमें शिवजीके मंदिर जाएं । नाममंत्र जपते हुए शिव जीको एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र अर्पण करें । पुष्पांजलि अर्पण कर, अर्घ्य दें । पूजासमर्पण, स्तोत्रपाठ तथा मूलमंत्रका जाप हो जाए, तो शिवजीके मस्तकपर अर्पित किए गए  पुष्प लेकर अपने मस्तकपर धारण करें और शिवजी से अपने अपराधोंके लिए क्षमायाचना करें । शिवरात्रिकी रात्रिके चारों प्रहरोंमें चार पूजा करनेका विधान है, जिसे यामपूजा कहा जाता है । प्रत्येक यामपूजामें देवताको अभ्यंगस्नान कराएं, अनुलेपन करें, साथ ही धतूरा, आम तथा बिल्वपत्र अर्पण करें । चावलके आटेके २६ दीप जलाकर देवताकी आरती उतारें । पूजाके अंतमें १०८ दीप दान करें । प्रातःकाल स्नान कर, पुनः शिवपूजा करें । पारण अर्थात् व्रतकी समाप्तिके लिए बशह्मणभोजन कराएं । (पारण चतुर्दशी समाप्त होनेसे पूर्व ही करना योग्य होता है ।) ब्राह्मणोंके आशीर्वाद प्राप्त कर व्रत संपन्न होता है । बारह, चौदह अथवा चौबीस वर्ष जब व्रत हो जाए, तो उद्यापन करें ।
शिवजीके नामजपका महत्त्व
महाशिवरात्रिपर नित्यकी तुलनामें १००० गुणाकार्यरत शिवतत्त्वका लाभ पाने हेतु
नमः शिवाय।' नामजप अधिकाधिक करें ।
(
संदर्भ : सनातनका ग्रंथ - शिव’)
------------------------------------

1 comment:

  1. धन्यवाद गुरूजी इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी के लिए

    ReplyDelete