क्यों करते हैं चरण स्पर्श-
भारत में चरण स्पर्श की अतिप्राचीन परंपरा है। व्यक्ति स्वयं से आयु में या रिश्ते-नाते में ब़डे व्यक्ति के चरण स्पर्श करता है। ग्रामीण महिलाएं अपने से ब़डी महिलाओं के चरण स्पर्श कर उन पर हल्का दबाव (पदचापन) डालती हंै और जिस बुजुर्ग महिला के पद दबाये जा रहे होते हैं, वह निरंतर दुआएँ, आशीर्वाद, आशीष, सदवचन बोलती रहती हैं, जिससे चरण स्पर्श, पदचापन और आशीर्वचन का परस्पर लेन-देन हो जाता है। व्यक्ति के शरीर में 72 नाç़डयाँ होती हैं और एक सामान्य स्वस्थ मनुष्य का ह्वदय भी एक मिनट में 72 श्वास-प्रच्छ्वास करता है अर्थात् एक प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। सेवा भी पूर्ण और आशीर्वाद भी पूर्ण। यह एक अनुभूत प्रयोग है कि कोई व्यक्ति कितना ही मलिन स्वभाव का हो, कितना ही दुश्चरित्र हो, कितना ही अपवित्र और दूषित विचारों का हो, यदि उसके भी चरण स्पर्श किए जाते हैं तो उसके मुख से आशीर्वाद, दुआ, सद्वचन ही निकलता है अथवा यदि वह ऎसा नहीं करता है तो अपने चरण स्पर्श के दौरान मौन रह जाता है, कुछ भी नहीं बोलता। श्रीभगवत् गीता के दशम स्कंध में गोपियों की विरह वेदना का वर्णन करते हुए महर्षि व्यास लिखते हैं कि हजारो उपालंभ, उलहाने, व्यथाएँ, कुंठाएं, दु:खीमन से व्याकुल गोपियों के समक्ष जब श्रीकृष्ण शांत और विनम्र भाव से मुस्कराते हुए प्रकट होते हैं तो वे उन्हें देखकर सब उपालंभ, नाराजगी भूल जाती हैं और अवाक् सी ख़डी रहकर "मौन" हो जाती हंै, उनके हाव-भाव, अंग-प्रत्यंग सब स्थिर हो जाते हैं, केवल "मौन" व्याप्त हो जाता है। पुन: महर्षि व्यास लिखते हैं कि "गोपियों का मौन हो जाना ही उनका "मोक्ष" हो जाना है।" इस दृष्टांत का यहां आशय यह है कि व्यक्ति का "मौन" कभी घातक, नकारात्मक और दूषित नहीं होता, अपितु सकारात्मक ऊर्जा सृजित करता है।
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