Tuesday 6 November 2012

चरण स्पर्श की वैज्ञानिकता :


चरण स्पर्श की वैज्ञानिकता :
 
"संस्कार" नामक "ज्योतिष मंथन" के इस स्थायी स्तंभ में जिस भी संस्कार की व्याख्या या विवेचना की जा रही है, उसमे संस्कार विशेष के मूल में गर्भित किसी वैज्ञानिक दृष्टिकोण या वैज्ञानिक तात्विक विवेचन पर प्रकाश डाला जा रहा है। विज्ञान में न्यूटन ने एक नियम का उल्लेख किया है कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुएँ "गुरूत्वाकर्षण" के नियम से बंधी हैं और गुरूत्व भार सदैव आकçषात करने वाले की तरफ जाता है। हमारे शरीर में भी यही नियम है। सिर को उत्तरी धु्रव और पैरों को दक्षिणी धु्रव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा (grantational force, magnetice or eleobomognetic force) सदैव उत्तरी धु्रव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है। इसका आशय यह हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी धु्रव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी धु्रव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है और दक्षिणी धु्रव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा मे स्थिर हो जाती है, यहाँ ऊर्जा का केंद्र बन जाता है, यही कारण है कि व्यक्ति हजारों मील चलने के पश्चात् भी चलने की इच्छा रखता है।
पैरों में संग्रहित इस ऊर्जा के कारण ही ऎसा हो पाता है। शरीर क्रिया विज्ञानियों ने यह सिद्ध कर लिया है कि हाथों और पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के पोरों (अंतिम सिरा) में यह ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान रहती है तथा यहीं से आपूर्ति और मांग की प्रक्रिया पूर्ण होती है। पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने की प्रक्रिया को ही हम "चरण स्पर्श" करना कहते हैं। यहां एक और महत्वपूर्ण प्राचीन परंपरा की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया जाता है कि प्राचीनकाल में जब ऋषि, मुनि, योगी या संतजन किसी राज दरबार में आते थे तो राजा पहले शुद्ध जल से उनके चरण धोता (चरण पखारना) था, तत्पश्चात् चरण स्पर्श की परंपरा पूर्ण करता था।

चरण स्पर्श से पहले चरण धोने के पीछे संभवत: यह वैज्ञानिक कारण रहा होगा कि चरणों में एकत्रित विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा चलकर आने से अत्यधिक तीव्रता से प्रवाहित है और गर्म है, धोने से यह सामान्य अवस्था में जाती है और जो व्यक्ति चलकर आता है, उसकी मानसिक और शारीरिक थकान/बेचैनी के कारण वह एकाएक शुभाशीषर्वाद देने की स्थिति में नहीं होता है, जल से उसका संपर्क आने से वह भी सामान्य स्थिति में जाता है, अब चरण स्पर्श पूर्णत: सकारात्मक स्थिति में होगा। इन प्रयोगों को आज भी यदि किसी प्रकार से किया जाए तो व्यावहारिक परिणाम मिलते हैं, देखा जा सकता है। आज भी इस परंपरा (चरण धोना और चरण स्पर्श करना) का निर्वाह पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाता है।

यहां एक और भी वैज्ञानिक पहलू का उल्लेख करना उचित होगा कि यदि स्त्री पात्र, स्त्री का और पुरूष पात्र, पुुरूष का चरण स्पर्श या चरण पखवारे तो परिणाम और भी अनुकूल मिलते हैं। लिंग भेद के इस रहस्य की विशद व्याख्या की आवश्यकता नहीं है, यह विज्ञान का ही नियम है कि xyy = y2 तथा yxy = y2 परंतु xxy = xy हो जाता है। ऊर्जा का द्विगुणित होना महत्वपूर्ण बात है अत: चरण स्पर्श की इस वैज्ञानिकता को परंपरा या रूढि़वादिता, अंध-विश्वास कहकर नकार देने मात्र से हमारा भला नहीं हो सकता। चरण स्पर्श की इस प्रक्रिया का उल्लेख करना भी समीचीन होगा। चरण स्पर्श करते समय यदि बायें हाथ से बायें पैर और दायें हाथ से दायें पैर का स्पर्श किया जाए तो सजातीय ऊर्जा का प्रवेश, सजातीय अंग से तेजी से और पूर्णरूप से होता है जबकि इसके विपरीत करने से ऊर्जा प्रवाह अवरोध या रूकावट के साथ होता है। एक और पहलू यह है कि जब व्यक्ति चरण स्पर्श करता है तो जिस व्यक्ति के चरण स्पर्श किए जाते हैं, उसके हाथ सहज ही चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर पर जाते हैं और उसके सहस्रार चक्र से स्पर्श होते हैं। सहस्रार चक्र में सक्रियता उत्पन्न होती है जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक का विकास सहज ही होने लगता है।

अभिवादन की परंपराओं में नमस्कार से अधिक चरण स्पर्श मानी जाती है। हमने "चरणोदक" या "चरणामृत" का स्वाद चखा है। प्रत्येक मंदिर में चरणामृत प्रसाद के रूप में मिलता है जिसका आशय है कि अप्रत्यक्ष रूप से आपने परम पिता परमात्मा के चरण स्पर्श कर लिए हैं, उनके चरणों से नि:सृज जल आपके शरीर में चला गया है। चरण सेवा, चरण वंदना, चरण पखारन, चरण स्मृति का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है कि प्रत्येक भारतीय चरणामृत पूर्ण श्रद्धा के साथ ग्रहण करता है। चरणों से निकले या धोए हुए जल को अमृत की संज्ञा दी जाती है। अमृत वह तत्व है जो ऊर्जा, उत्साह, शक्ति और दीर्घायु प्रदान करता है।

चरणामृत की चर्चा के अंतर्गत यह भी प्रासंगिक होगा। चरणामृत को "अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशमन्" कहा गया है। इस चरणामृत में तुलसी पत्र, केशर, चंदन, कस्तूरी, गंगाजल आदि को मिलाकर ताम्रपात्र में रखा जाता है। ये सभी वस्तुएँ एवं ताम्रपात्र व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, कई अधिव्याधियों का नाश करती हैं अत: चरणामृत हमारे लिए अमृत का कार्य करता है। इन सभी कारणों से चरण स्पर्श की महिमा का मंडन हुआ है, भारत में रची-बसी परंपरा है।

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