Tuesday 16 October 2012

शारदीय नवरात्र २०१२ ................. जय माता दी................


{"ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥"}

आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, मंगलवार १६ अक्टूबर २०१२ को शारदीय नवरात्रों का प्रारंभ हो रहे है.... मां दुर्गा सभी दु:खों को हरने वाली है। वे अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती तथा उनकी हर मनोकामना पूरी करती है। नवरात्र शब्द दो शब्दों नव़ + रात्र से मिलकर बना है। जिसका अर्थ नौ दिव्य अहोरात्र से है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्री का पर्व वर्ष में चार बार आता है। ये चार नवरात्रीयां बासंतिक,आषढीय,शारदीय व माघीय है जिसमें से दो नवरात्री शारदीय व बासंतिक जनमानस में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसी कारण शेष दो नवरात्री आषाढी व माघीय को गुप्त नवरात्री कहा जाता है।दुर्गा शब्द में द अक्षर दैत्यनाशक, उ अक्षर विघ्ननाशक, रेफ रोगनाशक, ग कार पापनाशक तथा आ कार शत्रुनाशक है। इसीलिए मां दुर्गा को दुर्गतिनाशिनी भी कहते है।

इस बार शारदीय नवरात्र मंगलवार को शुरू होकर मंगलवार को ही पूरे होंगे। 16 अक्टूबर, मंगलवार से 23 अक्टूबर, मंगलवार तक मनाया जाएगा। इस बार सिर्फ 8 दिन होगी माता की आराधना...........

नवरात्र में माता दुर्गा के नव स्वरूपो की पुजा करने का विशेष विधान है। ये नव स्वरूपो तीन देवियो पार्वती,लक्ष्मी और सरस्वती के तीन-तीन रूप है। जिसमे से प्रथम तीन दिनों में पार्वती के तीन रूपों की पुजा की जाती है। इससे अगले तीन दिनो में लक्ष्मी के तीनो रूपो की व शेष तीन दिनो में सरस्वती के तीन रूपो की पुजा की जाती है। इन तीन महाशक्तियों को संयुक्त रूप से दुर्गा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार ये नवस्वरूप-

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघंटेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठ कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिती महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
उक्तन्येतानि नामानि ब्रह्मणैन महात्मना।।

घट स्थापना, कलश स्थापना इत्यादि कर्म आप सब विधि पूर्वक किसी योग्य ब्राहमण - पंडित जी से ज़रूर पूछ ले... इन पवित्र पर्व में क्या - क्या करना चाहिए... ये मै आप सब के सामने प्रस्तुत कर रहा हु... आशा है की ये नवरात्री आपके जीवन में खुशहाली ले कर आये...

सर्वप्रथम माता के नौरुपो के मंत्र : -

मां शैलपुत्री : - श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं।
"ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:"

मां ब्रह्मचारिणी : - श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं।
"ॐ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नम:"

मां चन्द्रघण्टा : - श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।
"ॐ चं चन्द्रघण्टाय हुं"

मां कूष्माण्डा : - श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है।
"ॐ क्रीं कूष्मांडायै क्रीं ॐ"

मां स्कन्दमाता : - श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।
"ॐ स्कंदमाता देव्यै नम:"

मां कात्यायनी : - श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ कात्यायनी देव्यै नम:"

मां कालरात्रि : - श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे"

मां महागौरी : - श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ महा गौरी देव्यै नम:"

मां सिद्धिदात्री : - श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नम:"

No comments:

Post a Comment