अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है - दुर्गा
सप्तशती पाठ
माता को प्रसन्न करने के लिए साधक विभिन्न
प्रकार के पूजन करते हैं जिनसे माता प्रसन्न हो उन्हें अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ
विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। दुर्गा सप्तशती में सात सौ प्रयोग है जो इस प्रकार है:- मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के दो सौ, स्तंभन के दो सौ, विद्वेषण के 60 और वशीकरण के 60। दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा
बना है , दुर्ग =किला ,स्तंभ , शप्तशती अर्थात सात सौ | जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम सप्तशती है | इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है।
महत्व -जो कोई भी
इस ग्रन्थ का अवलोकन एवं पाठ करेगा “माँ जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा होगी |
दुर्गा सप्तशती
पाठ विधि
- सर्वप्रथम साधक को स्नान कर शुद्ध हो
जाना चाहिए।
- तत्पश्चात वह आसन शुद्धि की क्रिया कर
आसन पर बैठ जाए।
- माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें।
- शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें।
इसके बाद
प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि
मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें
तथा मंत्रों से संकल्प लें।
देवी का ध्यान
करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें।
फिर मूल नवार्ण
मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान
करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए।
इसके बाद उत्कीलन
मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है।
इसके जप के
पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए।
तत्पश्चात पूरे
ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी
प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं।
दुर्गा सप्तशती से
कामनापूर्ति—-
लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें।
वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के
आसन का प्रयोग करें।
बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का
आसन प्रयोग करें।
सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का
प्रयोग करें।
वस्त्र- लक्ष्मी
संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें। यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर
शाल लपेट लें। आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में
भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं।
हवन - जायफल से
कीर्ति और किशमिश से कार्य की सिद्धि होती है।
आंवले से सुख,कीर्ति और केले से पुत्र,आभूषण की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार फलों से
अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें।
खांड, घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश और कदंब से
हवन करें।
गेंहूं से होम
करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
खीर से परिवार, वृद्धि, चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है।
कमल से राज सम्मान
और किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से
मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाला
मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रमाण करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें।
इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई
करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है
नवार्ण मंत्र को
मंत्रराज कहा गया है।
‘ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’
शीघ्र विवाह के
लिए।
क्लीं ऐं ह्रीं
चामुण्डायै विच्चे।
लक्ष्मी प्राप्ति
के लिए स्फटिक की माला पर।
ओंम ऐं ह्रीं
क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
परेशानियों के
अन्त के लिए।
क्लीं ह्रीं ऐं
चामुण्डायै विच्चे।
दुर्गा सप्तशती के
अध्याय से कामनापूर्ति-
1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने
के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में
विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के
लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के
लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के
लिए l
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के
लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के
लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के
लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की
प्राप्ति के लिये।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ
प्राप्ति के लिये।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।
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